पासपोर्ट की फ़ोटो में मुस्कुरा क्यों नहीं सकते ? जानें इसकी वजह?

क्या आपने कभी सोचा है कि आप पासपोर्ट की फोटो में मुस्कुरा क्यों नहीं सकते ? या फिर एक ऐसा बैल जो पुरे एक करोड़ में बिका हो? आखिर ऐसा क्या ख़ास था इसमें ? जानेंगे ऐसे ही अमेजिंग फैक्ट्स के बारे में। तो बने रहिएगा वीडियो के एन्ड तक।

फैक्ट नंबर एक : ये तो आपको पता ही होगा की किसी दूसरे देश जाने के लिए आपको अपना पासपोर्ट बनवाना पड़ेगा और जब आप पासपोर्ट ऑफिस में फ़ोटो खिचवायेंगे , तो कोई भी आपसे स्माइल प्लीज नहीं बोलेगा। यहाँ तक की अगर आपने खुदसे मुस्कुराकर फोटो खिंचवाने की कोशिश भी की तो आपकी फोटो दोबारा ली जाएगी। लेकिन ऐसा क्यों होता है ? आपको बता दे कि जब पासपोर्ट के लिए फोटो खिचाई जाती है तो इसमें आपके चेहरे के शेप और साइज़ की पूरी जानकारी होती है , जैसे दोनों आँखों के बीच की दुरी , नाक और ठोडी के बीच की दूरी। और भी बहुत कुछ। लेकिन अगर आप मुस्कुरायेंगे तो आपका चेहरा नेचुरल पोज़ में नहीं रहेगा। इसके चलते कोई सटीक जानकारी निकाल पाना मुश्किल है।पासपोर्ट फ़ोटो की ताज़ा गाइडलाइन में चश्मा लगाकर फ़ोटो खिंचवाना, चहेरे से बाल ढकना और मुस्कुराना मना होता है।

फैक्ट नंबर दो : दोस्तों, ट्रैक्टर्स के आने से वैसे तो बैलों की इंपोर्टेंस कम हो गई है, लेकिन इंडिया में एक ऐसा बैल भी है जिसने सभी बैलों की नाक बचा रखी है। बंगलोर के एक मेले में , कृष्णा नाम के इस बैल ने अपनी धूम मचा रखी है। इस बैल की कीमत पुरे एक करोड़ है । अब सवाल ये है कि ये बैल इतना ज्यादा महंगा क्यों है? तो आपको बता दे कि, साढ़े तीन साल के बैल की नस्ल बहुत उम्दा है और ये बैल हलिकर नस्ल का है। इस नस्ल के बैल के विरिया सीमेन की बहुत मांग होती है, इस बैल के मालिक ने बताया कि कृष्णा के एक डोज स्पर्म की कीमत एक हज़ार रुपए है। तो अब आपको समझ आ गया होगा कि बैलों की importance अभी तक कम नही हुई है।

फैक्ट नंबर तीन- मंदिरों मे देवी देवताओं के अपने ध्वज होते है और भक्त उसी ध्वज को लगाते है लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश मे एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ पर तिरंगा फहराया जाता है, लेकिन एक शिव मंदिर मे ऐसा क्यों किया जाता है, तो आपको बता दे कि ये मंदिर रांची मे मौजूद है, जिसे पहाड़ी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस मंदिर को तिरिबूरु कहा जाता था और आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत के वक़्त यहाँ देशभक्तो और क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया जाता था। आज़ादी के बाद रांची मे पहला तिरंगा ध्वज यही पर फहराया गया था, जिसे रांची के ही एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने देशभक्तो की याद मे सम्मान मे फहराया था। तभी से ये परंपरा बन गई है कि हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहाँ तिरंगा फहराया जाता है।

फैक्ट नंबर चार : याददाश्त के मामले मे कोई बहुत अच्छा होता है, तो कुछ लोग बहुत ही ज्यादा कमज़ोर होते है। लेकिन हमारी, आपकी छतो पर काँव काँव करने वाले कौवे की याददाशत का मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता। इन्हे अपनी याद रखने की छमता के लिए भी जाना जाता है। और उनकी याददाशत को आप इस आदमी की कहानी से समझ सकते है। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में रहने वाले शिवा केवट को पांच सालों से कौवे का एक झुंड परेशान कर रहा था। इसकी वजह ये थी की एक बार वो कौवे के बच्चे को बचाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उसकी डेथ हो गई थी। और तभी से ये कोवे शिवा के पिछे पड़े हुए है। यहां तक की साइंटिस्ट भी कहते है की बाकी पक्षियों के मुकाबले कोवे की याददाश ज्यादा होती है तो आप भी अगर कोवों से पंगे लेने की फिराक में हो तो एक बार ज़रूर सोच लीजिएगा।