MAHASHIVRATRI: महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर आपको महारानी अहिल्याबाई होल्कर की अमर कहानी पता होनी चाहिए।
पुण्यश्लोक हमेशा शिवजी को अपने मन में रख कर शासन करती थी।उनके लिए शिव भक्ति और प्रजा पालन के अलावा कोई लक्ष्य नही था। दक्षिण में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का खासगी ट्रस्ट भी महारानी का ही बनवाया है,जिसमें सालो भर गंगाजल भरा रहता है जो उत्तर भारत से जाता है।
INDAUR की महारानी प्रतिदन करती थी मिट्टी के एक करोड़ शिवलिंग की पुजा
शिवभक्ति में रमी महारानी अहिल्याबाई होल्कर प्रतिदिन नर्मदा के नट पर एक करोड़ मिट्टी के शिवलिंग का अभिषेक और विसर्जन करती थी।उनकी जीवों के प्रति दया भी अतुलनीय थी। वो विशेष रूप से ब्राह्मणों से आग्रह करती थी कि जो मिट्टी के शिवलिंग वो पूजा के लिए बनाते हैं,वो अंदर अनाज रख कर बनाए जाये ताकि जब इन मिट्टी के शिवलिंगो का विसर्जन हो तब जल जीवों को भी भोजन मिले।
पुण्यश्लोक अहिल्याबाई ने कराया पूरे भारत वर्ष के मंदिरों का जिर्णोद्धार और घाटों का नवनिर्माण
महारानी अहिल्याबाई ने पुरे भारत के मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया । साथ ही साथ द्वादश शिवलिंगों के मंदिरों का भी जिर्णोद्धार किया । उनकी शिवभक्ति ऐसी थी कि उनके सरकारी आदेशों को शिव आदेश कहा जाता था । उसमें अहिल्याबाई हस्ताक्षर में भी अपना नाम ना लिख कर शिव शंकर का आदेश लिखती थी।
महारानी अहिल्याबाई ने जो परंपरा करोड़ शिवलिंग बना कर पुजने की परंपरा शुरू की थी अपने जीवन काल में वो आज भी जारी है,महेश्वर में स्थित अहिल्याबाई के बनाए शिव मंदिर में सोमवार को आज भी ये परंपरा निभाई जाती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदूओं के आस्था का केंद्र बिंदू है ,उसका भी निर्माण अहिल्याबाई ने ही किया है।महारानी अहिल्याबाई जिस महेश्वर में बैठ कर शासन करती थी,उसमें ऐसी व्यवस्था थी कि उसमें भगवान शिव का मंदिर और नर्मदा नदी दोनो के दर्शन उनके बैठने के स्थान से होते रहते थे। नर्मदा और बनारस के घाट भी पुण्यश्लोक के ही देन है।महेश्वर के 22 घाट भी महारानी ने ही बनाए हैं।
शिवरात्रि के पावन अवसर पर महारानी की धर्म जीवनी से पता चलता है,उनका समस्त जीवन शिवभक्ति और हिन्दुओं के उत्थान का स्वर्ण काल है।