पेड़ों को बचाने के लिए बना रही गोबर की लकड़ी
Gwalior की लाल टिपारा गौशाला जो मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी गौशाला भी है ने पर्यावरण बचाने के लिए एक अहम कदम उठाया है। लाल टिपारा गौशाला ने गाय के गोबर से लकड़ियां बनाई हैं, जिससे उपयोग में लाकर पेड़ों को काटने से बचाया जा सकता है।
कमाल का आइडिया, पर्यावरण की रक्षा भी, लोगों को रोजगार भी
होली नजदीक आते ही होलिका दहन के लिए लकड़ियों की जरुरत होती है तो जाहिर तौर पर पेड़ों की कटाई होती है।इसी को मद्देनजर रखते हुए Gwalior लाल टिपारा गौशाला ने गाय के गोबर से मशीनों की सहायता से लकड़ियां के सांचे जैसे गौकाष्ट बनाए हैं। जिनका प्रयोग होलिका दहन से लेकर किसी भी धार्मिक आयोजन में किया जा सकता है। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए ये कदम काफी असरदार होने वाला है।
Gwalior में आनलाइन बिक रही गौकाष्ट ,हो रहा है शवदाह में उपयोग
Gwalior लालटिपारा गौशाला में अभी 8000 से ऊपर गौवंश हैं। इन सबके लिए रोज दलिया एवं खाने की चीजे इनके गोबर से बने गोबर गैस से ही बनती हैं। जिससे प्रतिदिन एक एलपीजी सिलेंडर की बचत होती है। साथ ही साथ गौ शाला में काम करने वालों का भी भोजन गोबर गैस से ही बनता है। रोज लगभग 500 लोगों का भोजन गोबर गैस की सहायता से बनता है। लाल टिबर गौशाला ने अपनी गौकाष्ट लकड़ी को बिक्री के लिए आनलाइन व्यवस्था भी करवा ली है। इन लड़कियों का उपयोग शवदाह में भी हो रहा है।
एक अंत्येष्टि मे लगभग 4 क्वींटल लकड़ी का प्रयोग शवदाह में होता है पर इस गोबर से बनी लकड़ी से ये काम बस दो क्वींटल में हो जाता है। वर्तमान में इस गौकाष्ट की वजह से शवदाह में भी लकड़ियों का इस्तेमाल कम हो गया है।
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गौशाला प्रबंधन समिति के ऋषभ देव महाराज ने बताया कि इस गौकाष्ट को कैसे बनाया जाता है। गोबर के घोल को पतला कर लकड़ियों जैसे सांचे में डाला जाता है फिर उसे धूप में सुखने के लिए रख दिया जाता है। इस तरह से पुरा सुखने के बाद गौ काष्ट इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है।बहुत सारी सहकारी समितियां और व्यवसाय के दृष्टिकोण से लोगो ने इस गौ काष्ट निर्माण को रोजगार के लिए अपना लिया है, जिससे पर्यावरण के साथ साथ पेड़ों का भी संवर्धन हो रहा है।