Madhya Pradesh में धर्म बदलने वालों की डीलिस्टिंग की मांग

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Madhya Pradesh भारत का सबसे ज्यादा आदिवासी बाहुल्य राज्य है।

जब 2011 में जनगणना हुई थी तब इनकी कुल संख्या ढ़ेड करोड़ से भी अधिक थी। जिसमें भील जनजाति की संख्या सबसे अधिक थी। इसलिए मिशनरियों के निशाने पर भी सबसे पहले भील ही रहे हैं। Madhya Pradesh में सबसे ज्यादा धर्मांतरण इसी जनजाति का हुआ है।

आरएसएस के जनजातीय सुरक्षा मंच ने रोका धर्मांतरण

पिछले दिनो Madhya Pradesh के झाबुआ, खरगौन, मालवा में जिनआदिवासियों ने धर्मांतरण कर लिया है, फिर भी छुप कर आरक्षण का लाभ ले रहे हैं उनके विरोध में रैलियां निकाली गई थी। धर्मांतरण के तरफ बढ़ते आदिवासी समाज को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सबसे पहले 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच बनाया था।

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जो अभी लगभग देश के हर आदिवासी बहुल राज्यों में कार्य कर रही है। इस मंच ने आदिवासियों को सरकार द्वारा मिलने वाले योजनाओं के लाभ को बताया, धर्मांतरण के नुकसान को समझाया, साथ ही साथ ये भी पुख्ता किया की भोले भाले आदिवासी अपने लोकसंस्कृति को बचाएं। मध्यप्रदेश के 39% भीलों को उस समय के लचीले धर्मांतरण कानून से ना डरने वाले धर्म बदलवाने वालों से बचाना बहुत ही आवश्यक था।

दिल्ली तक डिलिस्टिंग की मांग उठाएगी जनजाति सुरक्षा मंच :Madhya Pradesh

जनजाति सुरक्षा मंच मध्य भारत के प्रमुख कैलाश निनामा ने बताया कि धर्मांतरण करने वाले मूल आदिवासी लोगों के आरक्षण का फायदा उठा रहे हैं।

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वो मूल आदिवासी धर्म को भी बदल ले रहे धर्मांतरित होकर और 70% नौकरियों में आरक्षण का लाभ ले रहे है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341-2 में बस आदिवासियों और जनजातियों को आरक्षण का प्रावधान आजादी के बाद से ही प्राप्त है।पर धर्मांतरित लोग ऐसा नही होने दे रहे।वो जनजाति का मुखौटा ओढ़ कर आरक्षण का लाभ उठा रहे है। संविधान में डीलिस्टिंग संबंधी संशोधन की आवश्यकता है।

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हम मांग करते हैं कि जो लोग धर्मपरिवर्तन कर ले रहे वो आदिवासियों के किसी भी फंड या आरक्षण का लाभ ना उठाए।इसलिए उनको डीलिस्टिंग करना जरूरी है । बिहार के जनजातीय नेता कार्तिक उरांव में इस संबंध में 1970 में 235 सांसदों का समर्थन भी जुटा लिया था।पर मामला और डीलिस्टिंग बिल तब से अधर में लटका है। इसलिए हम सब जल्दी ही दिल्ली अपनी मांगो को लेकर जाने वाले हैं।