हम आपको बताने वाले हैं पद्मनाभ मंदिर के रहस्य के बारे में जो आपके होश उड़ा देंगे। एक ऐसे मंदिर के बारे में जो है दुनिया का सबसे अमीर मंदिर। जहाँ के गर्भ गृह के दरवाजों को खोलने पर आ सकता है जल प्रलय या मिल सकता है अरबो का खजाना।
मंदिर में प्रवेश के नियम
भारत सदियों से अपने विशाल मंदिरों और आस्था के लिए जाना जाता है ऐसी ही आस्था का केंद्र केरल की राजधानी थिरुवंथपुराम स्थित श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर है। ये मंदिर जितना विशाल और अद्भुत है इसके रहस्य भी उतने ही गहरे हैं। इस मंदिर का नाम पद्मनाभ भगवान विष्णु से ही पड़ा है, पद्मनाभ उस अवस्था को कहते हैं जिसमे भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। अब आप समझ ही चुके होंगे कि इस मंदिर का नाम पद्मनाभ स्वामी इसीलिए है क्योंकि इस मंदिर में भगवान विष्णु की जो प्रतिमा है वो विश्राम की अवस्था में ही है। इस मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति सिर्फ हिंदुओं को ही है और श्रद्धालुओं के लिए वस्त्र निर्धारित है, पुरुषों के लिए सफेद धोती एवं महिलाओं के लिए साड़ी अनिवार्य परिधान है।
मंदिर का निर्माण और त्रवान्कोर सम्राज्य
पद्मनाभ मंदिर के प्रथम निर्माण के बारे में कोई साक्ष्य उपलब्ध नही है, माना जाता है कि इसका निर्माण अत्यंत पौराणिक काल में हुआ होगा क्योंकि इसका उल्लेख विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण, स्कन्द पुराण जैसे कई अत्यंत पौराणिक ग्रन्थों में है। इस मंदिर के पुनः निर्माण का श्रेय त्रावणकोर के महाराज मार्तान्देय वर्मा को जाता है जिन्होंने 1733ईसवी में इसका पुनः निर्माण करवाया। इस निर्माण के पीछे भी एक रोचक कहानी है।
राजा मार्तान्देय वर्मा ने अपने कुशल नेतृत्व से राज्य को बड़े व्यापार क्षेत्र में बदल दिया था जो कि विश्व भर में अपने मसालों, मेवे के लिए प्रसिद्ध था, दुनिया भर के व्यापारी यहाँ व्यापार करने आते और बदले में कीमती मुद्राएं देते। देखते देखते व्यापार इतना फल फूल गया कि राज्य के पास अकूट धन संपत्ति जमा हो गयी। इसी संपत्ति की सुरक्षा के लिए महाराज परेशान रहने लगे कि एक दिन उन्हें स्वप्न में भगवान विष्णु के दर्शन हुए और उन्होंने स्वयं उन्हें इस समस्या से निकलने का रास्ता सुझाया। राजा ने मंदिर बनवाया और धन को मंदिर के गर्भ गृह में छिपा दिया।
1750में महाराज ने राज काज से सन्यास ले लिया और खुद को भगवान पद्मनाभ का सेवक घोषित कर दिया। तब से ले कर आजादी तक इस मंदिर की जिम्मेवारी राजा मार्टण्डेय की पीढ़ियों के पास रही। हालांकि आजादी के उपरांत रियासतों की मान्यताएं रद्द हो गयी जिसमें ये फैसला हुआ कि इस मंदिर की देख रेख त्रावणकोर के अंतिम शासक श्री चिथीरा थिरुणाल बलराम वर्मा के हाथों में होगी। बलराम वर्मा का देहांत 1991 में हुआ तो मंदिर की देख रेख उन्ही के भाई के हाथों चली गयी जिन्होंने 2007 में मंदिर की संपत्ति पर अपने परिवार का दावा किया।
मंदिर की संपत्ति पर दावे का विवाद
इस दावे के बाद देश में विवाद उपजा और मंदिर की संपत्ति को सार्वजनिक करने की माँग उठने लगी, स्थानीय न्यायालयों में मामला चला पर बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में एक समिति बना कर मंदिर के गर्व गृह एजन मौजूद दरवाजों को खोलने का आदेश जारी किया। इस मंदिर के गर्भगृह में मौजूद 6 दरवाजों को खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई जिसे अंग्रेजी वर्णमाला के A से ले कर F तक नामित किया गया। दरवाजा E और F वो दरवाजे थे जो नियमित रूप से खोले जाते थे, C तथा D विशेष अवसरों पर खोले जाते थे जबकि जब A दरवाजे को खोला गया तो दुनिया भौचक्की रह गयी।
इस दरवाजे को खोलने के उपरांत इसमे महंगे हीरे-जवाहरात, स्वर्ण आदि की प्रतिमाएं, बड़े बड़े हीरे-जवाहरात जड़ित हार मिले। इस दरवाजे के पीछे जो सोने के आभूषण मीले वो करीब 1000 किलों से अधिक थे साथ ही इसमे मीले संपत्ति का मूल्य 1 लाख करोड़ से भी अधिक मापा गया, दावा है कि इतना धन दुनिया के किसी मंदिर के पास नही है।
आज भी नहीं उठ सका है रहस्य से पर्दा
जबकि B नामक दरवाजे को आज तक खोला नही गया, माना जाता है कि इस दरवाजे को खोलना प्रलयकारी साबित हो सकता है, इस दरवाजे के पीछे से पानी की आवाज आती है जिसे खोलने पर मंदिर को जल प्रलय का सामना करना पड़ सकता है, इस दरवाजे पर सर्प जड़ित हैं जो किसी खतरे का संकेत प्रतीत होती है।
2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए ट्रावणकोर राज परिवार को इस मंदिर का प्रबंधक बनायें रखने का हुक्म दिया परन्तु इसकी देख रेख की जिम्मेवारी भारत सरकार के पास भी है। आज भी लोग दरवाजा संख्या Bके पीछे छिपे रहस्यों से अनजान हैं।