ऐसा क्रांतिकारी जिसके नाम पर पाकिस्तान में स्मारक बनाने की उठी माँग…

आजादी के नायकों के नाम पर हमने सड़कें दी, चौराहे दिए, सरकारी सम्मान दिए लेकिन क्या आप जानते हैं माँ भारती ने एक ऐसा नायक को भी जन्म दिया, जिसके नाम पर न सिर्फ हिन्दुस्तान बल्कि हमारे पडोसी मुल्क पकिस्तान में भी शहीद समरक बनाने की मांग उठी जिसने स्वाधीनता संग्राम में न सिर्फ अपने प्राणों की आहुति दी बल्कि हिन्दुस्तान की माओं को ये ख्वाब भी दिया कि काश हमारी कोख से भगत सिंह जैसा बेटा हो….

भाग्यशाली थे भगत सिंह 

जब भगत सिंह का जन्म हुआ तो उनके पिता एवं चाचा जी दोनों जेल में थे उनके जन्म के समय ही उन दोनों को जेल से रिहा कर दिया इसी वजह से भगत सिंह की दादी ने उनका नाम भागा रख दिया दरअसल उनका मानना था कि इस बालक का भाग्य बहुत प्रबल है इसीलिए उसके जन्म लेते ही पिता एवं चाचा को जेल से रिहा कर दिया गया |
भगत सिंह के घर में दो दो क्रन्तिकारी थे| उनके चाचा अजित सिंह के खिलाफ २२ केस दर्ज थे, उनका बचपन क्रांतिकारी गतिविधियों के बीच गुजरा इसी वजह से जैसे जैसे भगत सिंह बड़े हो रहे थे उनके अन्दर क्रान्ति की चिंगारी भी ज्वाला का रूप ले रही थी |

 

जलियावाला बाग़ हत्याकांड का पड़ा गहरा असर

साल 1919 में हुए जलियावाला बाग़ हत्याकांड का भगत सिंह के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा, 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने सरकारी स्कूल की किताबों एवं कपड़ों को आग लगा दिया और महात्मा गाँधी के साथ असहयोग आन्दोलन का हिस्सा बन गए | लेकिन साल 1921 में चौरी चौरा कांड में आरोपित किसानों के प्रति गांधी जी की उदासीनता देख कर भगत सिंह का मन विचलित हो उठा और उन्होंने गाँधी जी को छोड़ कर चंद्रशेखर आज़ाद की नेतृत्व में ग़दर पार्टी से जुड़ गए |
चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह एवं अन्य क्रांतिकारियों ने काकोरी काण्ड को अंजाम दिया जिसके बाद क्रांतिकारियों की धर पकड़ तेज हो गयी | इस काण्ड में आरोपित राम प्रसाद बिस्मिल समेत 4 अन्य क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गयी

साभार : गूगल फ़ोटो

लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लिया

 

साल 1928 में भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए जोकि चंद्रशेखर आज़ाद द्वारा बनाई गयी एक मौलिक पार्टी थी| 30 अक्टूबर 1928 में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में सभी क्रांतिकारी साइमन कमीशन का विरोध करते हुए “साइमन वापस जाओ” का नारा लगा रहे थे| उसी आन्दोलन में लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय बुरी तरह से घायल हो गये और अस्पताल में इलाज़ के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी |
इस घटना के बाद भगत सिंह का खून खौल उठा और उन्होंने अपनी पार्टी के साथियों के साथ मिलकर स्काट की हत्या षड्यंत्र बनाया लेकिन छोटी सी गलती की वजह से स्काट की जगह सांडर्स की हत्या कर दी गयी
सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह लाहौर निकल गए लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने सभी को पकड़ने के लिए चारो तरफ जाल फैला दिए |

असेम्बली में बम फेंक कर दी गिरफ्तारी 

इसके बाद भगत सिंह के कदम नहीं रुके उनका मानना था कि अंग्रेजी हुकूमत ज़रा ऊँचा सुनती है और उस तक हमें अपनी आवाज़ पहुंचाने के लिए धमाका करना होगा| भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर असेम्बली में बम फेंकने का प्लान बनाया और एक ऐसा बम बनाया जो सिर्फ तेज धमाका कर सकता था लेकिन उसमें किसी के जान खतरा नहीं था| क्यूंकि उन्हें अपनी आवाज़ अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंचानी थी इसलिए उन्होंने बम फेंकने के बाद वहां से भागने बजाय गिरफ्तारी दी |
जेल में भगत सिंह को तरह तरह की यातनाएं दी गयी, जेल भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था, न तो उन्हें खाने के लिए अच्छा भोजन, न पढने के लिए किताब व् अख़बार और न ही पहनने के लिए साफ़ सुथरे कपडे दिए जाते थे |
इन सारी मुसीबतों से भारतीय कैदियों को छुटकारा दिलाने के लिए जेल में उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी |
उनके ऊपर मुकदमा चलता रहा और उन्हें लाहौर षड्यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गयी |

 

निर्धारित तिथि से पहले दी गयी फांसी 

ब्रितानिया सरकार ने भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव को फांसी देने के लिए 24 March 1931 का दिन निर्धारित किया लेकिन उस समय भारत के कोने कोने में भारत माँ के इन तीन वीर बेटों को आजाद कराने लिए आन्दोलन हो रहे थे, अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों की उग्रता देख कर बौखला गयी और २३ मार्च यानी की निर्धारित तिथि से एक दिन पहले ही उन तीनों वीरों को मध्य रात्रि फाँसी दे दी गयी |
दोस्तों जेल में भगत सिंह ने सम्पूर्ण भारतवासियों के लिए एक पत्र लिखा था| उस पत्र को इंटरनेट के माध्यम से ढूंढ कर ज़रूर पढ़ें |