कोहिनूर की रहस्यमयी गाथा

रहस्यों से भरी दुनिया

दुनिया तरह – तरह के रहस्यों से भरी हुई है |
कहीं ऐसे मंदिर हैं जिनके तहखाने के पीछे प्रलय दबा हुआ है
तो कहीं ऐसे कुँए हैं जहाँ खजाने छिपे हुए हैं| दरअसल आज की कहानी है| कोहिनूर हीरे की जो श्रापित है|
अब कोहिनूर हीरा श्रापित क्यूँ कहा जाता है, इसके पीछे कोई कहानी नहीं बस घटनाएँ हैं

दरबार की शान कोहिनूर

सिक्ख सम्राज्य के अंतिम शासक महाराजा दिलीप सिंह को अपने पिता महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद माँ रानी जिन्दाँ के संरक्षण राजसिंहासन पर बैठाया गया |
29 मार्च 1849 को महाराज दिलीप सिंह जब 10 वर्ष के थे| तब अंग्रेजी हुकूमत ने उनसे सत्ता को हस्तांतरित करवा लिया | लाहौर किले से खालसा झंडे की जगह यूनियन जैक के झंडे ने ले ली |
कोहिनूर उस वक्त महाराज दिलीप सिंह के दरबार की शान हुआ करता था |
सत्ता हस्तांतरण के बाद कोहिनूर हीरा भी अंग्रेजों के हाथ लग गया| कोहिनूर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं|

ताज में जड़ित कोहिनूर की फाइल फोटो (चित्र साभार – गूगल)

कोहिनूर का इतिहास

ऐसी मान्यता है कि कोहिनूर गोलकुंडा की खदानों से प्राप्त हुआ था| लेकिन कब और कैसे इस बात का इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं है| कुछ लोगों का कहना है कि कोहिनूर तुर्कियों द्वारा किसी मूर्ति की आँख से निकला गया था| कुछ लोकोक्तियों के अनुसार कोहिनूर 3200 ईसा पूर्व किसी व्यक्ति को नदी की तली में मिला था| हालाँकि इन कहानियों में कोई प्रमाणिकता नहीं है |
कोहिनूर का लिखित ज़िक्र इतिहास में पहली बार विलियम डेलरेम्पल की किताब “कोहिनूर द स्टोरी ऑफ़ द वर्ड्स मोस्ट इनफ़ेमस डायमंड” में मिलता है| वो लिखते हैं कि सन 1750 में फारसी इतिहासकार मुहम्मद मारवी ने अपनी किताब नादिरशाह “भारत के वर्णन” में कोहिनूर का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि उन्होंने अपनी आँखों से कोहिनूर को देखा है| वो उस समय मयूर सिंहासन में जड़ा हुआ था| जिसे नादिरशाह भारत से लूट कर इरान ले गया था| मयूर सिंहासन बेशकीमती सिंहासन था| उसे बनाने में ताजमहल बनाने से ज्यादा खर्च आया था|
नादिरशाह ने मयूर सिंहासन से कोहिनूर को निकाल लिया ताकि वह उसे अपने हाथ में पहन सके| नादिरशाह कोहिनूर की खूबसूरती का कायल हो गया| उसी ने इस हीरे का नाम कोहिनूर यानि की “रौशनी का पहाड़” रखा |

श्रापित क्यूँ कहा जाता है कोहिनूर

कोहिनूर का एक बे अंत सफ़र शुरू हो चूका था| कोहिनूर जिसके पास भी जाता उस साम्राज्य का पतन शुरू हो जाता| नादिरशाह कोहिनूर का मालिक बनकर पतन के रास्ते पर अग्रसर हो चूका था| उसका राज्य तितर बितर हो गया |
उसके भतीजे अली कुली ने उसकी मदद करने से मना कर दिया| अंत में उसके अंगरक्षक ने उसकी हत्या कर दी | उसकी मृत्यु के बाद अली कुली ने खुद को शाह घोषित कर दिया| उसने अपना नाम बदल कर अहमद शाह अब्दाली रख लिया | कोहिनूर उसके संरक्षण में आ गया| सन 1830 में यह हीरा शाह शुजा के पास था| उन्होंने यह हीरा महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया | रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद इस हीरे के उत्तराधिकारी राजकुमार दिलीप सिंह हुए| जिनसे अंग्रेजी हुकूमत ने हीरा लेकर उसे गुपचुप तरीके से ब्रिटेन भेजने की तयारी में लग गयी|

भारी पड़ गया कोहिनूर को लन्दन भेजना

लार्ड डलहौजी ने जिस जहाज से इसे ब्रिटेन भेजने का प्लान किया उस जहाज के कप्तान को भी इस बात की खबर नहीं थी कि वो अपने साथ श्रापित हीरा कोहिनूर भी लेकर चल रहे हैं| यात्रा के दो हफ्ते बाद जहाज पर हैजा फ़ैल गया उन्होने जहाज को मॉरिशस में रोकना चाहा लेकिन वहां की हुकूमत ने चेतवानी दी कि महामारी से भरी हुई जहाज यदि इधर आती हुई दिखाई दी तो हम इसे तोप से उड़ा देंगे | वो जहाज को उसी हालत में लेके आगे बढ़ते रहे और कुछ ही दिनों में चालक दल में भी हैजा फ़ैल गया|
इस यात्रा दौरान उन्हें एक भयंकर तूफान का भी सामना करना पडा जिसने जहाज को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया |

अंग्रेजी हुकूमत के पतन का कारण बना कोहिनूर

अंततः जब वो जहाज लन्दन पहुंचा तब उनके चालकों को पता चला कि वो अपने साथ श्रापित कोहिनूर को लेकर चल रहे थे| ये घटनाएँ जो उनके साथ रस्ते में घटित हुई शायद कोहेनूर की वजह से ही थी |
1850 में इस हीरे को ब्रिटेन के अधीन सौंप दिया गया और इसके बाद ब्रितानिया सरकार का पतन शुरू हो गया 1857 की क्रान्ति के बाद आज़ादी की चिंगारी फैलती गयी और अन्ततः ब्रितानिया सरकार का सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हिन्दुस्तान से अंत हो गया | आज भी किसी पुरुष को उस हीरे को छूने की अनुमति नहीं है| ब्रिटेन की रानियाँ ही इस हीरे को पहनती हैं |