हमारा भारत अनेक रहस्यों से भरा हुआ है, ऐसे रहस्य की जिन्हें विज्ञान भी नही सुलझा सका।
ऐसा ही एक रहस्य है ज्वाला देवी मंदिर। इसे जानने का प्रयास अकबर से ले कर आज के वैज्ञानिकों ने की परन्तु अंत में सबने हार मान ली। इस वीडियो में हम आपको बतायेंगे ज्वाला देवी मंदिर के बारे में वो सब कुछ जिसे जान आप भी रह जाएंगे चकित।
शिव और सती से है मंदिर का जुड़ाव
यह रहस्यमयी मंदिर भगवान शिव और माता सती से जुड़ा है और 51 शक्तिपीठों में से एक है।
यह माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती के अंगों में से उनकी जीभ गिरी थी।
पौराणिक काल में इस रहस्यमयी मंदिर को ढूंढने का श्रेय पांडवों को जाता है। हिमाचल के कांगड़ा जिले में एक स्थान है। जहाँ कई सौ वर्षों से 9 ज्वालायें प्राकृतिक रूप से प्रज्वलित हैं। जो माँ अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी एवं महाकाली के नाम से जानी जाती है।
इसके पीछे एक लोकश्रुति है जिसके अनुसार भगवान विष्णु ने जंगलों-पहाड़ों के इलाकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाने चाहते थे। उन्होने इसके लिए एकाग्रता से लगातार पृथ्वी पर अपनी दृष्टि डाली जिससे भयंकर आग की लपटें उठी।
इसी अग्नि से एक बालिका का जन्म हुआ जो स्वयं आदि शक्ति थीं, बाद में शिव-सती प्रसंग में सती के शरीर के अवशेष जहाँ जहाँ गिरे वो शक्तिपीठ कहलाएं।
इस मंदिर का प्रथम निर्माण राजा भूमि चंद द्वारा करवाया गया था। इस रहस्यमयी ज्वाला के बारे में उन्हें एक चरवाहे ने बताया था। राजा को ज्ञात था कि इसी स्थान के पास माता सती की जीभ गिरी थी इसीलिए उन्होंने इस जगह पर भगवती मंदिर का निर्माण कराया। महाराज रंजीत सिंह और राजा संसारचंद ने आगे चल कर इसका पुनः निर्माण कराया।
मुगल सुलतान अकबर ने भी झुका दिए सर
इस ज्वाला के रहस्य को जानने की जिज्ञासा हमेसा बनी रही और भिन्न काल में लोगों ने इसे समझने की कोशिसें की।मुगल काल में जब ज्वाला देवी के रहस्य के बारे में अकबर को पता चला तो उसे ईश्वर की इस महिमा पर भरोसा नही हुआ।
अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने इस ज्वाला को बुझाने के कई प्रयास किये।
यहाँ तक कि उसने पूरा नहर ही ज्वाला देवी की और मोड़ दिया पर लाखों प्रयासों के बाद ज्वाला नही बुझी।
अकबर ये सब देख कर दंग रह गया और हार मान कर उन्होंने ईश्वर की इस महिमा को स्वीकार कर लिया।
अकबर ने क्षमा याचना करते हुए ज्वाला देवी को एक सोने की छत्र भी भेंट की पर माता ने उसे स्वीकार नही किया। कहा जाता है कि माता अकबर के व्यहार से इतनी रूष्ट थी कि वो छत्र वहीं गिर गयी और किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गयी।
अंग्रेज और विज्ञान भी हैं रहस्य से अनजान
इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस रहस्य को जानने के लिए तमाम विज्ञान का इस्तेमाल किया।
इस इलाके में 9 किलोमीटर तक खुदाई की पर फिर भी वो इस रहस्य का भेद नही जान सकें। आज भी लाखों श्रद्धालु ज्वाला देवी मंदिर पहुँच कर पूजा अर्चना करते हैं और इस चमत्कार के सामने दंडवत होते हैं। विज्ञान की मानें तो इस स्थान पर निकले वाली ज्वाला किसी पुराने ज्वालामुखी की हो सकती है।
दोस्तों आप हमें कमेंट कर बताएं कि आप इस चमत्कार को किस रूप में देखते हैं?
ऐसी ही अन्य रोचक वीडियो के लिए हमसे जुड़े रहे।