हिज़ाब विवाद की शुरुआत कहां से शुरू हुआ ?
कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद इतनी सुर्खिया बटोरेगा ये शायद ही किसी ने सोचा होगा । इस मामले में जनवरी महीने में इसी साल 6 छात्राएं कॉलेज में हिजाब पहन कर जाने को लेकर अड़ गयी । इसके बाद कर्नाटक सरकार ने इसपर बैन लगाया था जिसपर छात्राएं हाईकोर्ट जा पहुंची , पर हाईकोर्ट से भी उनको फटकार ही मिली, जिसके बाद उनको वापस जाना पड़ा । इसके बाद मुस्लिम छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । पहले लगा की कॉलेज इस मामले को सुलझा लेगा लेकिन मामला कोर्ट में पहुंचा , जहाँ इनको राहत नही मिली , इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और यहाँ भी मामला उलझता दिखाई दे रहा है ।
सुप्रीम कोर्ट में आए दो अलग फैसले क्या हैं ?
हिजाब विवाद के ऊपर सुप्रीम कोर्ट में दो अलग फैसले आए हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने जहाँ कहा कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य नहीं इसलिए कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला सही है। वहीं जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल खड़ा किया। जस्टिस धुलिया ने कहा कि आखिर लड़कियाँ लोकतंत्र में कहाँ कुछ ज्यादा माँग रही हैं, उन्हें सिर्फ हिजाब ही तो पहनना है, क्या ये अधिकार उन्हें नहीं दिया जा सकता।फैसला सुनाते हुए जस्टिस धुलिया ने कहा कि स्कूल गेट पर हिजाब उतरवाना छात्राओं की निजता और सम्मान का हनन है। ऐसा करवाना मतलब अनुच्छेद 19(1) और 21 का उल्लंघन करना है। उन्हें अधिकार है कि वो अपने सम्मान और निजता को साथ रखें, चाहे फिर वो स्कूल के बाहर हों या फिर क्लासरूम के अंदर।जस्टिस धुलिया हिजाब के पक्ष में बोलते हुए स्कूल प्रशासन और राज्य से पूछते हैं कि आखिर उन लोगों के लिए लड़कियों की शिक्षा जरूरी है या फिर ड्रेस कोड को लागू करवाना जरूरी है।
सवाल ये भी उठता है की इस्लामिक देश में महिलाएं हिजाब का विरोध कर रही है तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में मुस्लिम महिलाएं इसको पहनने के लिए इतनी कट्टर क्यों बन रही है ?