2024 में उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से चुनाव की तैयारियां जोरों पर देखी जा रही है। 2024 के चुनाव के लिए कांग्रेस भी अपनी तैयारियां करते हुए नजर आ रहा है, लेकिन क्या उसकी तैयारियां काफी है।
पार्टी पिछले तीन दशकों से अधिक समय से राज्य की सत्ता से दूर है। इस बीच उसका जनसमर्थन और संगठन दोनों कमजोर होते चले गए हैं। इस समय राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की पदयात्रा कर रहे हैं और इसी बीच अध्यक्ष पद के चुनाव की सरगर्मी उत्तर प्रदेश में पोस्ट पड़ी कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रही है।
राहुल गांधी 2024 में उत्तर प्रदेश में वापसी करेंगे
इसमें पार्टी की प्रदेश की कमान दलित नेता बृजलाल खबरी को सौंपी गई है। अल्पसंख्यक और अन्य जाति समूह से जुड़े अन्य क्षेत्र चेहरे प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए हैं और उन्हें अलग–अलग प्रदेश के क्षेत्रों की जिम्मेदारियां भी दी गई है।
सवाल यह भी सामने आ रहा है, कि क्या राहुल गांधी 2024 में उत्तर प्रदेश की पारिवारिक सीट अमेठी से दोबारा वापसी करेंगे लेकिन पार्टी राहुल गांधी कॉमेडी से उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य नामित करने के संदेश देने की भी कोशिश की है, कि गांधी परिवार की अपने पुराने क्षेत्र में दिलचस्पी कायम है।
लंबे समय से गांधी परिवार के नाते अमेठी पहचानी जाती रही है, आपातकाल के दिनों में एक श्रमदान शिविर के जरिए संजय गांधी अमेठी से जुड़े थे। बगल की रायबरेली सीट का प्रतिनिधित्व तब इंदिरा जी करती थीं। उस दौर में अमेठी संसदीय क्षेत्र के पांच में दो विधानसभा क्षेत्र रायबरेली और तीन क्षेत्र सुल्तानपुर जिले का हिस्सा थे। 1977 में संजय गांधी को अमेठी ने निराश किया था लेकिन 1980 की जीत से उन्होंने हिसाब बराबर कर लिया था। बाद में राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने संसद में अमेठी का प्रतिनिधित्व किया।
लोकसभा में सबसे ज्यादा 80 सीटों की हिस्सेदारी करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश से ही है और यहां का प्रतिनिधित्व रायबरेली से होता है। पार्टी की अंतरिम सद्दीक से सोनिया गांधी 2004 से लगातार इस सीट पर जीत दर्ज कर रही है। वहीं प्रदेश में विपक्ष के कब्जे की जीत 14 सीटों पर भाजपा की नजर है, उसमें रायबरेली पर खास फोकस किया जा रहा है।
कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी बृजलाल खाबरी को दी है, लंबे समय तक बसपा से जुड़े रहे। 1999 में बसपा के टिकट पर जालौन से सांसद भी चुने गए। फिर बसपा ने उन्हें राज्यसभा में भी भेजा। पार्टी का महासचिव भी बनाया, लेकिन 2016 से कांग्रेस से जुड़ने के बाद बृजलाल न खुद चुनाव जीत पाए और न ही कांग्रेस के पक्ष में कुछ जोड़ सके। अब देखना होगा की यह पार्टी क्या कर पाती है।