महेंद्र सिंह धोनी: न भूतों न भविष्यति

    उस दौर में बिहार की मिट्टी सोना (खनिज-सम्पदा) उगलती थी। जो अब झारखंड के हिस्से में है। महेंद्र सिंह धोनी भी शायद उसी संपदा की तरह झारखंड की हिस्से चलें गये।

    महेंद्र सिंह धोनी और क्रिकेट

    7, जुलाई 1981 को एक साधरन परिवार में जन्मे माही ने बड़ी ही कम उम्र में खुद को एक एथेलेटि के रूप में अपने आस-पास के लोगो के समक्ष स्थापित कर लिया था। क्रिकेट माही के जीवन में तीसरे नंबर पे आया था। जबकि बैडमिंटन और फुटबॉल में धोनी ने जिले ओर क्लब स्तर पे अपनी पहचान छोटी सी उम्र में ही बना ली थी। क्रिकेट ने महेंद्र सिंह धोनी को तब चुना जब रांची के एक क्रिकेट टीम को एक मैच के लिए विकेटकीपर की जरूरत थी। तब अपनी टीम में फुटबॉल टीम में गोल कीपर की भूमिका निभाने वाले धोनी को इस खानापूर्ति के लिए उनके साथ भेजा गया। धोनी न सिर्फ उस मैच में उस टीम का हिसा बनें बल्कि अगले सभी मैचों के लिए क्लब ने उन्हें विकेटकीपर के तौर पे चुन लिया।

    समय के साथ धोनी ने राँची के हरमू ग्राउंड में अपनी बल्लेबाजी से लोगो का अपना प्रसंसक बनाना शुरू कर दिया था। प्रतिभा को आगे बढ़ते देर न लगी और धोनी धीरे-धीरे राजकीय व राष्ट्रीय स्तर पे विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पे खेलने लगे।

    अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में धोनी का पदार्पण

    वो दौर था 2003-04 का जब राष्ट्रीय टीम में राहुल द्रविड़ जो कि एक मुख्य बल्लेबाज थे। उन्हें विकेटकीपर की भूमिका भी अदा करनी पड़ रही थी। क्रिकेट तब उस दौर से आगे बढ़ गया था जब टीमें विकेटकीपर को पहले विकेटकीपर ओर बाद में बल्लेबाज के रूप में देखती थी। जो कि बल्लेबाजों में सबसे अंतिम खिलाड़ी के रूप में आता था या फिर कुछ टीमें वीकेटकीपर के स्थान में काम चलाउ वीकेटकीपर रखते थे। जो कि बल्लेबाज की भूमिका में ज्यादा बेहतर होते थे।

    एडम गिलक्रिस्ट और मार्क बाउचर वीश्व जगत में दो ऐसे विकेटकीपर बल्लेबाज आएं जिन्होंने हर टीम को विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में दुनिया को एक नया लक्ष्य दीया था। श्रीलंका ने संगकारा को ला कर इस कड़ी को ओर मजबूत किया। भारत अब भी अपने ऐसे सितारे की तलाश में था जो विकेट के पीछे जितना चौकन्ना हो वो विकेट के आगे भी उतना ही उम्दा भी।

    2004 में आखिरकार पहली दफा धोनी का चयन राष्ट्रीय टीम में हुआ। वो अंडर 19 के कप्तान रह चुके पार्थिव व दिनेश कार्तिक सरीखे विकेटकीपर बल्लेबाजों को पीछे छोड़ कर टीम में चुने गये। दिसंबर 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ आकर्षण का केंद्र बना ये लंबे बालों वाला लड़का पर अफसोस कि उस आकर्षण को नजर लगी और सातवे नंबर पे बल्लेबाजी करने आये माही बिना खाता खोले ही रन आउट हो गये। अगले 3 मैचों तक भी माही के बल्ले से रन गिने चुने ही निकले।

    पाकिस्तान के खिलाफ धोनी की धुआंधार पारी

    फिर आया वो मैच जिसने चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला शतक लगाने वाले बल्लेबाज को एक नया आयाम दिया। वो एक पारी ओर वहाँ से फिर उसने फिर कभी पीछे मुड़ कर नही देखा। 2005 के अप्रैल के महीना था, सचिन और सौरभ जैसे दिग्गज के जल्द पविलियन लौटने के बाद उस लंबे बालों वाले लड़के को आज तीसरे नंबर पे बल्लेबाजी को भेजा गया। क्या खूब खेल गया वो, 15 चौकों ओर 4 छक्कों से सजी उस पारी में धोनी के बल्ले से 123 गेंद पे 148 रन निकले थे। इस पारी ने सुनिश्चित कर दिया था कि भारत की आज नये युग के विकेटकीपर बैट्समैन की तलाश खत्म हुई। अब हमारे पास भी ग्लिक्रिस्ट है जो न ही सिर्फ विकेट के पीछे लाजबाब है बल्कि बल्लेबाजी में ऊपरी कर्म का हथियार है।

    धोनी अब नियमित रूप से टीम का हिस्सा थे। 2005 के oct-nov में भारत की श्रीलंका के साथ 7 मैचों की एकदिवसीय श्रृंखला थी जिसकी कप्तानी राहुल द्रविड़ कर रहे थे। इसमे अतिशयोक्ति नही होगी अगर इस श्रीखला को धोनी के लिए याद किया जाए। भारत ने यह 6-1 से जीती थी और धोनी ने 4 पारियों में 173 की औसत से 346 रन बनाये थे। इन्ही में से एक पारी थी 183 रनों वाली और इसी के बाद दुनिया को आभास हो गया कि धोनी कोई दूसरा गिलक्रिस्ट नही बल्कि पहला धोनी है। जो न सिर्फ धुआंधार बल्कि लगातार लंबी पारियां खेल सकने में माहिर है। यहाँ से माही हीटर से फिनिशर के रूप में उभरा।

    पहला टी-20 विश्वकप और कप्तानी

    2007 वर्ल्डकप में भारत ने अप्रत्याशित हार झेली जो अपमानजनक थी। इसके बाद टीम प्रबंधन ने आनन फानन में कप्तान राहुल द्रविड़ को हटाया फिर ऐसे में समस्या थी कि अब कौन? सीनियर खिलाड़ी सचिन ने धोनी का नाम आगे बढाया ओर सर्वसहमति से धोनी भारत के कप्तान नियुक्त हो गए।  ये डगर इतना आसान नही था, आगे इसी साल धोनी को न सिर्फ नई टीम बनानी थी बल्कि अब t-20 के प्रारूप के लिए ऐसी टीम भी बनानी थी जो पहले t-20 विश्वकप के लिये दुरुस्त हो।

    t-20 विश्वकप में दुनिया ने धोनी की नेतृत्व क्षमता को देखा जब उन्होंने बेहद कम ही समय में न ही सिर्फ खुद से सीनियर बल्कि हाल ही में जुड़े खिलाड़ियों को भी एकजुट रखा और उनका सही समय पे इस्तेमाल करते हुए भारत को ये खिताब दिलवा कर इतिहास बना दिया। ये वो साल था जो क्रिकेट के दृष्टिकोण से भारत के लिए बहुत बुरा जा रहा था। टीम उथल-पुथल हो चुकी थी पर धोनी की नेतृत्व क्षमता ने इन सारी बाधाओं को पार कर भारतीय क्रिकेट जगत के स्वर्ण युग का बिगुल फूंक दिया था।।

    धोनी के नेतृत्व में बजा भारतीय क्रिकेट टीम का डंका

    अब भारतीय टीम लगातार खेल के हर प्रारूप में बेहतर कर रही थी। देश-विदेश में भारत का डंका जोर शोर से बजने लगा था। ये वो दौर था जब भारत के बड़े खिलाड़ी जैसे सौरभ, द्रविड़, लक्ष्मण, कुंबले आदि के भविष्य का कुछ भी पता नही था। कोई नही बता सकता था कि ये कब चले जायेंगे और धोनी एक ऐसी ही टीम का नेतृत्व करते जा रहे थे  उन्होंने यहाँ भी दुनिया को बोलने का मौका नही दिया औऱ नई ओर युवा टीम बनाने पे अग्रसर रहे। कोहली, रोहित, रैना, अश्विन इन्ही सालों में भारतिय टीम में पैर जमा रहे थे। इनके पैर जमाने के दौरान वो एक खिलाड़ी था जो हर किसी को आगे करते ही जा रहा था और परिणाम स्वरूप 3-4 नंबर पे बल्लेबाजी करने वाले धोनी अब 6-7 नंबर के बल्लेबाज के रूप में आ गये।

     

    साल 2008, 2009, 2010 में लगातार धोनी के बल्ले से 1 साल में 1000 से ज्यादा रन निकलें। कुंबले ने जब टेस्ट की कप्तानी छोड़ी तो इसका जिम्मा भी धोनी को मिला।
    धोनी का प्रदर्शन इतना लाजबाब रहा की वो लगातार दो साल ICC odi cricketer of the year चुने गए व ICC द्वारा बनाई जाने वाली test व odi team में वो लगातार चुने जाने लगे।

    2011 विश्वकप

    धोनी वीश्व के उन खिलाड़ी में से हैं जिसने हर साल अपने नाम किया था किसी न किसी रूप में।
    2011 में फिर से एक बार भारत की परीक्षा थी। वक़्त था क्रिकेट के महाकुम्भ का और धोनी की अग्नि परीक्षा का। भारत एक के बाद एक मैच जीत कर फाइनल में पहुंच चुका था। श्रीलंका ने 274 रनों का जो सम्मानजनक लक्ष्य दिया था। वो तब ओर विशालकाय हो गया जब भारत ने जल्दी ही अपने दोनों सलामी बल्लेबाजों सहवाग फिर सचिन को शुरुआत में ही खो दिया। फाइनल का दबाब सर पे था गंभीर का साथ देने चौथे नंबर पे युवा कोहली आये थे और दोनो ने सधी हुई साझेदारी को आगे बढाया था। भारत अच्छे स्थिति में पहुंचता की कोहली को दिलशान ने अपने ही गेंद पे लपक लिया था।

    भारत मुश्किल में था और अब बारी थी युवराज सिंह की जो पूरे टूर्नामेंट में भारत के लिए सबसे भरोसेमंद बन कर उभरे थे पर डर भी था चुकी सेमीफाइनल में ही युवराज वहाब रियाज की एक योर्कर पे पहली ही गेंद पे शून्य पे आउट हुए थे। ऐसे में मलिंगा और मुथैया उनके लिए भी बड़े घातक थे फिर भी दुनिया ने अंदाजा लगाया था कि अब बारी युवराज की है पर ये क्या, ये तो कप्तान धोनी क्रीज़ पे आ गये खैर धीरे-धीरे खेल आगे बढ़ा। हर गेंद के बाद धोनी गंभीर से बातें करते और भारत हर रन के साथ उम्मीद जगा रहा था ऐसे में गंभीर और धोनी ने एक लाजबाब साझेदारी करते हुए भारत को जीत की ओर आस्वस्त कर दिया।

    गंभीर 97 की बेहतरीन पारी खेल परेरा की गेंद पे बोल्ड हो गए और यहाँ से धोनी और युवराज ने आसानी से मैच को खत्म कर भारत वासियों को उंस साल की सबसे बड़ी खुशियाँ दे दी। 28 साल बाद का ये सूखा अब जा कर खत्म हुआ था और हुआ भी तो क्या लाजबाब हुआ, धोनी का वो आखरी छक्का हर भारतीय के मस्तिष्क पे छा गया। कप्तान ने फाइनल में आ कर 74 गेंदों पे 91 रन की पारी खेली थी और मैच को खत्म किया था।

    इस वर्ल्ड कप के बाद भारत और मजबूत हो गया और 125 करोड़ हिंदुस्तानियों की उम्मीदे भी धोनी के कंधों पे हमेसा रहने लगी। धोनी जो कि अब एक निचले क्रम के बल्लेबाज थे उन्हें अब भारत शतक मारते तो नही पर मैच खत्म करते जरूर देखता था। 2013 आया और ICC का एक ओर बड़ा टूर्नामेंट था ये Champions trophy अब भारत के पास एक नई टीम थी, दिग्गज सारे जा चुके थे ऐसे में सवाल यही था कि क्या धोनी के धुरंधर भारतीयों की झोली में ICC की एक ओर ट्रॉफी डाल सकेंगे तो जबाब मिला, हाँ।

    पूरे टूर्नामेंट में शानदार खेल दिखाते हुए भारत ने आखिर फाइनल में इंग्लैंड को उसी के घर में रोमांचक मुकाबले में मात दे दी। ये स्पष्ट कर दिया कि धोनी की बनाई ये नई टीम अब भविष्य के दिग्गजों की है जो पहले से कही मजबूत है।
    इस ट्रॉफी के साथ धोनी दुनिया के इकलौते ऐसे कप्तान बने जिसने ICC की सारी ट्रॉफी जीती हो। ये साबित हुआ कि धोनी न ही सिर्फ एक विकेटकीपर बल्लेबाज हैं बल्कि एक लाजबाब लीडर भी ओर ये प्रतिभा अब तक वीश्व में किसी में नही दिखी थी बस इसीलिए धोनी कोई और नही बल्कि सिर्फ धोनी है।

    महेंद्र सिंह धोनी: न भूतों न भविष्यति

    आज अटकलों का बाजार है, प्रसंसको के साथ आलोचकों की भी टोली है। शायद उन्हें अंदाजा नही की इस धोनी ने सिर्फ ड्रेसिंग रूम में ही नही बल्कि 22 गज की उंस पट्टी पे भी न जाने कितने बल्लेबाजों को सिर्फ बल्लेबाजी के दौरान ही पाल लिया है। जडेजा, अश्विन, भुवि अगर आज निचले क्रम में बल्लेबाजी के लिए जाने जाते हैं तो वो इसिलिए क्योंकि उन्होंने बल्लेबाज़ी के विशेष गुण उस 22 गज पे धोनी से ही सीखे हैं।

    धोनी ने एक बल्लेबाज के रूप में वो हासिल किया है जो हर बल्लेबाज की चाह होती है। 297 परियां है जिसमे से 250 के करीब तो नंबर 5-6-7 पे खेली है फिर भी 11,000 के करीब रन ये कोई मामूली बात नही है।
    वीश्व में 10 हजारी बल्लेबाज सिर्फ वही हैं जो ऊपरी कर्म में खेले हो जबकि मात्र धोनी ही ऐसे बल्लेबाज हैं जो निचले क्रम में खेलते हुए इस लिस्ट में शामिल हुए। धोनी दुनिया के मात्र बल्लेबाज हैं जिन्होंने नंबर 7 पे खेलते हुए 2 शतक लगाए हैं। धोनी दुनिया के मात्र चौथे विकेटकीपर हैं जिनके नाम 320 से ज्यादा cathches हैं और मात्र विकेटकीपर हैं जिन्होंने 120+ स्टंपिंग की है। धोनी बिजली की गति से विकेट के पीछे खड़े होते हैं जो गेंदबाजों को रिलैक्स रखता है। धोनी 38 के उम्र में भी 22 गज पे इतने तेज भागते हैं जिससे साथी बल्लेबाजों को भी 1 के बड़े 2 और 2 के बदले 3 रन मिलते हैं। धोनी किसी विशेष क्रम पे बल्लेबाजी करने वाला खिलाड़ी नही है बल्कि 1 से 7 के कर्म पे कहीं भी खेलते हुये कम से कम 45 के औसत से रन हैं। कुल 50 की औसत से रन है उनके नाम और धोनी इन्ही छोटी-छोटी बातों से टीम के लीये एक बड़ी जीत बनाते हैं। खेल के इस प्रारूप में धोनी ने 10 शतक व 73 अर्धशतकों की मदद से 10,700 से अधिक रन बनाए हैं इस मुकाम को हासिल करने वाले वे छठे सबसे तेज खिलाड़ी हैं।

    धोनी का टेस्ट करीयर हालांकि उनके odi करीयर के सामने थोड़ा फीका जरूर है पर वो भी सामान्य से बेहतर है। टेस्ट से उनके रिटायरमेंट के आज 6 साल बाद भी वहाँ भारतीय टीम का कोई दूसरा विकेटकीपर बल्लेबाज उनकी जगह लेने में असमर्थ दिखाई देता है। धोनी ने टेस्ट में 90 मैचों के 144 इनिंग में 6 शतक और 33 अर्धशतक की मदद से 4800 से अधिक रन बनाये। जो उन्हें विश्व क्रिकेट के अब तक के सभी विकेटकीपरों में तीसरे स्थान पे दर्शाता है, क्रिकेट के सबसे बड़े प्रारूप में एक विकेटकीपर के लिए एक बड़ी उपलव्धि है। इस प्रारूप में विकेट के पीछे धोनी के 256 catch और 38 स्टंपिंग है।

    अतः धोनी से बढिया बल्लेबाज थे, हैं और आयेंगे
    धोनी से बढिया विकेटकीपर थे, हैं और आयेंगे
    धोनी से बढिया कप्तान थे, हैं और आयेंगे
    धोनी से बढिया फिनिशर थे, हैं और आयेंगे

    पर
    धोनी बस एक है, अब इस सहस्त्र युगों तक कोई धोनी नही आयेगा ओर ये अतिशयोक्ति है तो धोनी ने जो दिया है क्रिकेट को वो भी अतिशयोक्ति है।।