क्या आप ब्रह्मलीन संत जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के जीवन से परिचित हैं?
क्या है शंकराचार्य परम्परा
हिन्दू धर्म के अनुसार शंकराचार्य को हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना गया है।
इस पद का सृजन भगवान आदि शंकराचार्य के द्वारा किया गया था।
उन्होंने भारत के चारों दिशाओं में 4 मठों की स्थापना की थी।
स्वरूपानंद सरस्वती भी आदि शंकराचार्य की इसी परंपरा से आते थे।
इन्हें सन 1981 में इस सर्वोच्च पद पर आसीन होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की प्रारंभिक जीवन यात्रा
2 सिंतबर 1924 को मध्यप्रदेश के दीघोरी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार के घर एक बालक का जन्म हुआ।
जिसका नाम रखा गया पोथीराम उपाध्याय। जो आगे चल कर स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से जाने गयें।
स्वरूपानंद का मन बचपन से ही भवगान की पूजा में लगा रहता था।
इसी कारण मात्र 9 वर्ष की उम्र में स्वरूपानन्द धर्म यात्रा पर निकल पड़ें।
इस धर्म यात्रा के दौरान कई तीर्थों की यात्रा की। इसी दौरान वाराणसी में धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी से मिलें।
क्रन्तिकारी सन्यासी का नाम क्यूँ पड़ा?
स्वरूपानंद सरस्वती ने आजादी के आंदोलनों में भी सक्रिय भागीदारी ली।
वह स्वामी करपात्री जी द्वारा गठित अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी बनें।
स्वामी स्वरूपानन्द ने 19 वर्ष की आयु में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया।
जिसके लिए उन्हें 2 बार 8 एवं 6 महीनों के लिए जेल भी जाना पड़ा।
उन्हें जल्द ही क्रांतिकारी सन्यासी की ख्याति भी प्राप्त हो गयी।
स्वरूपानन्द को उनके गुरु, शारदा पीठ शंकराचार्य ब्रह्मानंद सरस्वती द्वारा सन 1950 में दंडी सन्यासी की दिक्षा दी गयी।
शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती जी ने जीवन पर्यंत हिन्दू व देश हित में अनेकों संघर्ष किये।
1950 के दशक में गौ हत्या के खिलाफ उनकी अगुआई महत्वपूर्ण है। इस आंदोलनों के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा उन्हें 1954 से 1970 के बीच 3 बार जेल भी भेजा गया।
राजीव गाँधी को राजनीती में आने की दी थी सलाह
यह माना जाता है की 1980 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र संजय गाँधी की आकस्मिक मृत्यु हुई।
स्वरूपानन्द जी गाँधी परिवार को सांत्वना देने उनके घर पहुँचे।
वहाँ उन्होंने राजीव गाँधी को राजनीति में आने की सलाह दी थी।
शंकराचार्य पद पर रहने के दौरान भी उठाये राष्ट्रिय व धार्मिक मुद्दे
स्वरूपानन्द सरस्वती 80 के दशक के शुरुआत में ही शंकराचार्य के पद पर आसीन हुए।
वो एक नही बल्कि 2 मठों, द्वारका व ज्योतिर्मठ के शिर्ष पद पर आसिन हुए।
इस पद पर रहते हुए शंकराचार्य स्वरूपानन्द जी महाराज ने धर्म हित व समाज हित में अनेक कार्यों का संचालन किया।
स्वामी जी अपनी बेबाकी के लिए अनेकों बार सुर्खियों में रहें।
श्री राम मंदिर निर्माण को ले कर उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल भी उठाया था।
इसके अलावा स्वामी जी ने हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या के बीच सामंजस्य बिठाने की भी वकालत की थी।
स्वरूपानंद जी महाराज धर्म और राष्ट्र के कार्यों में संलग्न रहें।
उन्होंने गंगा स्वच्छता, धर्म परिवर्तन, ISKCON, UCC, अनुछेद 370, साईं बाबा आदि के मुद्दों को उठाया।
स्वरूपानंद 98 वर्ष की उम्र में हुए ब्रह्मलीन
11 सिंतबर 2022 को 98 वर्ष की आयु में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में स्वामी जी ब्रह्मलीन हो गए।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व गोरखनाथ मंदिर के महंत श्री योगी आदित्यनाथ समेत देश-विदेश के उनके करोड़ों अनुयायियों ने शोक व्यक्त किया।