कोहिनूर और मयूर सिंहासन
दोस्तों कुछ दिन पहले हमने आपसे कोहिनूर के बारे में ज़िक्र किया था, जिसमे हमने आपको बताया कि कोहिनूर को नादिरशाह ने तख़्त ए ताउस यानी कि मयूर सिंहासन से निकाला था
आज हम उसी तख़्त ए ताउस के बारे में बताने वाले हैं जिसमें से विश्व का बेशकीमती हीरा कोहिनूर निकला गया, जिसे बनाने में ताजमहल बनाने से भी ज्यादा खर्च आया था |
क्या है मयूर सिंहासन
मुग़ल सल्तनत ने किसी भी कब्ज़ा की गई वस्तु में ज़रा सा परिवर्तन करके उसे हथियाने का काम बखूबी किया है | तख़्त ए ताउस यानी कि मयूर सिंहासन, इसका ज़िक्र इतिहास में पहली बार मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के शासन काल में हुआ लेकिन मयूर सिंहासन का इतिहास इससे भी पुराना माना जाता है |
मयूर सिंहासन की बनावट
मयूर सिंहासन को सोने के छह पायों पर बनाया गया था | इसकी लम्बाई 13 फूट चौड़ाई 6 फीट और उंचाई पंद्रह फीट थी | इस सिंहासन तक पहुचने के लिए तीन सीढियाँ बनायी गयी थी जिसमें दूर दराज के देशों से मंगाए गये कीमती पत्थर एवं हीरे जवाहरात जड़े हुए थे | इस सिंहासन के बांह पर भगवान शंकर पुत्र कार्तिकेय की सवारी मोर को स्थापित किया गया है | जिनकी चोंच में मोतियों की लड़ी लटकाई गयी है एवं मोर के सीने बेशकीमती लाल माणिक जड़े हुए हैं, पन्ने के बने हुए पाँच खम्भों पर इस सिंहासन का शीर्ष था | कलाकृतियों से सजा हुआ इस सिंहासन का स्वर्णछत्र इसका प्रमुख आकर्षण था| सूर्य की रौशनी पड़ने पर मयूर सिंहासन किसी तारामंडल सा प्रतीत होता था |
नादिरशाह की आँधी
शाहजहाँ कुछ दिनों तक ही इस सिंहासन पर बैठ पाया फिर उसके बाद उसके छोटे बेटे औरंगजेब आलमगीर ने उसे कैद कर लिया | औरंगजेब के बाद दिल्ली के गद्दी पर मुहम्मद शाह रंगीला का अधिपत्य ही गया और दिल्ली दरबार में दिन रात नाच गाने गीत संगीत होते रहते | दिल्ली धन दौलत से भरी हुई थी| नादिरशाह दिल्ली लुटने के लिए खैबर दर्रे को पार करके अपने पचपन हज़ार सैनिकों के साथ करनाल के मैदान में सिर्फ तीन घंटे के अन्दर ही शाह रंगीला पर फतह हासिल कर ली और उसे कैद करके दिल्ली में प्रवेश किया, नादिरशाह के नाम के सिक्के ढाले जाने लगे, उसके नाम का ख़ुत्बा पढ़ा गया | लेकिन अगले दिन शहर में अफवाह फ़ैल गयी कि नादिरशाह का किसी तवायफ ने क़त्ल कर दिया इसके बाद दिल्ली के निवासियों ने नादिरशाह के सैनिकों पर हमला कर दिया | जब ये खबर नादिरशाह को हुई तो उसने दिल्ली में नरसंहार शुरू कर दिया, दिल्लीवासियों का कत्लेआम होता रहा | नादिरशाह दिल्ली पर शासन करने नहीं आया था वह दिल्ली से माल असबाब लूट कर वापस फारस चला गया लूट के इस माल तख़्त ए ताउस भी शामिल था|
नादिरशाह को मिला धोखा
फारस में उसके सगे सम्बन्धियों ने ही उसे धोखा दिया और उसका सबकुछ उससे छीन कर उसकी हत्या कर दी | फारस पहुँचते पहुँचते मयूर सिंहासन कई टुकड़ों में बंट गया था | समय बदला और फारस पर इरान के आगा मुहम्मद शाह की हुकुमत हो गयी, आगा शाह ने लूट के खजाने का पता कर लिया, यहाँ तक आते आते मयूर सिंहासन कई टुकड़ों में बंट गया था | आगा मुहम्मद शाह ने कई जौहरियों से बुलाकर मयूर सिंहासन को दुरुस्त करने की अपील की|
दफ़न हो गया मयूर सिंहासन
जौहरियों ने मिलकर तख़्त ए ताउस को नई शक्ल दे दी जो आगा मुहम्मद शाह को नहीं पसंद आया और इसी बीच फारस में गृह युद्ध छिड़ गया, इस गृह युद्ध के दौरान तख्ते ताउस को समुद्र की गहराइयों में छिपा दिया गया तब से आज तक तख्त ए ताउस समुद्र की गहराइयों में दफन है |