दोस्तो ये कहानी है उस यूनिवर्सिटी की, जहां नौ मंजिला लाइब्रेरी , तीन लाख से ज्यादा किताबो का भंडार, दस हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स और दो हज़ार के लगभग टीचर्स रहा करते थे। ये बात है एक हज़ार साल से भी ज्यादा पहले की । आज भले ही बिहार में बहुत कम लोग जाना चाहते है, लेकीन उस दौर में विदेशों से लोग बिहार की इस नालंदा यूनिवर्सिटी में पढ़ने आते थे। दोस्तो, आपने भी इस यूनिवर्सिटी के बारे में कभी न कभी तो जरुर सुना होगा, लेकिन आज हम आपको बताएंगे की आज से एक हजार साल से भी ज्यादा पहले, पटना से 90 किलोमीटर दूर , दुनियां की ये पहली रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी थी कैसी? और कैसे ये वक्त के साथ खंडर में तब्दील होती चली गई।
क्या ख़ास बात थी इस यूनिवर्सिटी में ?
तो दोस्तो, ये बात है साल 1022 की, जब पांचवी शताब्दी में बसी नालंदा युनिवर्सिटी , देश विदेश, सब जगह फेमस हो रही थी। लोग इस यूनिवेट्सिटी को बसाने वाले कुमार गुप्त की तरीफो के पुल बांध रहे थे। चारो तरफ बड़ी बड़ी पत्थरों से घिरा यूनिर्वसिटी कैंपस दूर से ही देखने से भव्य लगता था। और तो और इस युनिवर्सिटी को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में भी रखा गया है। यूनिजर्सिटी की एंट्री के लिए एक मैन गेट था, जबकि टोटल 6 गेट्स थे। और इन 6 गेट्स पर कोई सुरक्षाकर्मी नहीं बल्कि विद्वान पंडित बैठे रहते थे। इसके बाद अंदर पहुंचने पर उत्तर से दक्षिण तक एक लाइन में कई मठ बने हुए थे। पानी के लिए भी कई कुवे खोदे गए थे। तो वही छात्रों के कमरों में सोने के लिए पत्थर और पढ़ने के लिए दीपक यानी की दिया रखा होता था। दिए की रोशनी में अनार की कलम से भोजपत्र पर ये सभी छात्र ज्ञान की बात लिखते थे। और आज की तरह हर सब्जेक्ट के बड़े बड़े नोट्स नहीं बनते थे। बल्कि शोर्ट में ही नोट्स बनाएं जाते थे। क्युकी उस समय कलम और पन्नो, दोनों की ही कमी थी। शुरुआत में इस यूनिवेट्सिटी को चलाने के लिए दो सौ गांव दिए गए थे। दोस्तो, आपको जानकर गर्व होगा कि ये दुनियां की पहली रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी थी । यहां एडमिशन मिलने का मतलब , आज के दौर में हावर्ड में एडमिशन मिलने जैसा है। और यहां पढ़ने वाले बच्चों में सिर्फ भारत के ही नहीं, कोरिया , जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, और तुर्की से भी बच्चे आते थे। चीनी यात्री हेनसांग ने भी यहां कई साल रहकर पढ़ाई की थी। और यहां पढ़ने वाले बच्चों में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबंधु और नागार्जुन जैसे कई विद्वान शामिल है। दोस्तो , ये युनिवर्सिटी दस किलोमीटर के इलाके में फैली थी। और यहां तीन सौ कमरे बच्चो को पढ़ाने के लिए ही बनाएं गए थे। नौ मंजिला एक लाइब्रेरी थी, जिसमे तीन लाख से ज्यादा किताबे , रिसर्च के लिए रखी गई थी। यहां साइकोलॉजी से लेकर लैंग्वेज साइंस , इकोनॉमिक्स, आयुर्वेद और एस्ट्रोनॉमी की पढ़ाई होती थी।
बख़्तियार ख़िलजी ने किस डर से किया इसे तबाह ?
लेकिन साल 1199 में इतनी शानदार युनिवर्सिटी तब पूरी तरह से खत्म हो गई, जब कई अलग अलग हमलों में बख्तियार खिलजी ने इसे तबाह करवा दिया। कहते है कि यहां रखी किताबे नौ महिने तक जलती रही थी और दोस्ती ये पहली बार भी नहीं था, जब नालंदा युनिवर्सिटी पर ऐसा हमला हुआ हो, बल्कि इससे पहले इस युनिवर्सिटी के बनने के कुछ साल बाद ही इसपर हमले हुए लेकिन उस समय राजाओं ने इसे बचा लिया। हालाकि दोस्तो आपके दिमाग में एक सवाल जरुर उठ रहा होगा, कि आख़िर इसे मिटाने की वजह क्या थी? किसी राजा को भला किसी यूनिवर्सिटी से क्या चिढ़ हो सकती थी? तो दोस्तो शुरुआत के दो हमले तो दुश्मनी की वजह से हुए, लेकिन आख़िर का हमला जो बख्तियार खिलजी ने किया, वो बौद्ध धर्म के प्रचार, प्रसार को रोकने के लिए था। अब ऐसा भी नहीं था कि इस युनिवर्सिटी में बस बौद्ध धर्म की ही पढ़ाई होती थी, यहां हर धर्म के लोग पढ़ने आते थे इसीलिए खिलजी को ये युनिवर्सिटी इस्लाम धर्म के लिए खतरा लगी और इसीलिए उसने इसे तबाह कर दिया। और दोस्तो कहते है तबसे ही ये नालंदा युनिवर्सिटी एक खंडर बनके रह गई है।