जोशीमठ में डोर-टु-डोर सर्वे शुरू, शहर के नीचे 16 किमी लंबी सुरंग जमीन धंसने की मुख्य वजह

    उत्तराखंड के चमौली जिले में जमीन और पहाड़ धंस रहे हैं। जोशीमठ के 561 घरों में दरारें आ गई हैं। आपदा की आहट के चलते केंद्र सरकार ने सरकार ने NTPC तपोवन-विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना और हेलंग बाईपास का काम अगले आदेश तक रोक दिया है।

    pic credit – google

     

     

    NTPC और हेलंग बाईपास प्रोजेक्ट रोका गया

    उत्तराखंड के चमौली जिले में जमीन और पहाड़ धंस रहे हैं। जोशीमठ के 561 घरों में दरारें आ गई हैं। आपदा की आहट के चलते केंद्र सरकार ने सरकार ने NTPC तपोवन-विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना और हेलंग बाईपास का काम अगले आदेश तक रोक दिया है।

    उधर गुरुवार रात और शुक्रवार सुबह प्रशासन और राज्य आपदा प्रबंधन के अधिकारियों समेत विशेषज्ञों की एक टीम ने जोशीमठ में प्रभावित क्षेत्रों में डोर-टु-डोर सर्वे किया।

    जोशीमठ का धंसना नई बात नहीं है। 1976 की मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में भी जोशीमठ के धंसने की बात कही गई है। मिश्रा कमेटी के मुताबिक जोशीमठ में भारी भवन बनाना 1962 के बाद शुरू हुआ। तब भी लोगों ने भूस्सखलन की शिकायत की थी। जिसके बाद मिश्रा कमेटी बनाई गई।

    यह रिपोर्ट कहती है- कई एजेंसियों ने जोशीमठ में जंगलों को तबाह कर दिया है। पथरीली ढलान खाली और बिना पेड़ों के रह गई हैं। जोशीमठ करीब 6,000 मीटर की उंचाई पर है लेकिन पेड़ों को 8,000 फीट पीछे तक ढकेल दिया गया है। पेड़ों की कमी के कारण कटाव और भूस्सखलन बढ़ा है। ऊंचे पहाड़ों की चोटियां प्राकृतिक आपदाओं के लिए खुली पड़ी हैं। लुढ़ककर आने वाले बड़े पत्थरों को रोकने के लिए कुछ नहीं है।

    रिपोर्ट में सलाह दी गई थी कि जोशीमठ में भवन निर्माण के भारी काम पर रोक लगे। रोड रिपेयर और दूसरे कंस्ट्रक्शन के लिए बड़े पत्थरों को खोदा या ब्लास्ट करके हटाया न जाए। इलाके में पेड़ और घास लगाने के लिए बड़े कैम्पेन चलाए जाएं। पक्का ड्रेनेज सिस्टम भी बनाया जाए।