शांतिप्रिय राज्य उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित हल्द्वानी में कई दिनों से स्थानीय लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों में ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं हैं। उन्होंने अपने हाथों में बैनर-पोस्टर और तख्तियां ले रखी हैं, जिस पर सरकार से सवाल किया गया है कि उनके साथ आखिर भेदभाव क्यों किया जा रहा है? इस जमावड़े में नूपुर शर्मा केस के समय सुर्खियों में आए मुहम्मद जुबैर जैसे कट्टरपंथियों का नाम भी शामिल है जिन्हें कांग्रेस का भी पूरा समर्थन प्राप्त है। यहां तक कि लोग इस प्रदर्शन की तुलना CAA के खिलाफ शाहीन बाग में चले प्रोटेस्ट से भी कर रहे हैं।
क्या अतिक्रमण का होता है कोई धर्म?
दरअसल, हाई कोर्ट के आदेश पर हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की ओर से अतिक्रमण हटाया जा रहा है। रेलवे की 78 एकड़ जमीन पर बसी गफूर बस्ती के 4 हजार 365 घरों को तोड़ा जाना है जिसमें लगभग 50000 की आबादी रहती है। आपको बता दें कि इस अवैध कब्जे की शुरुआत साल 1975 से हुई थी। 2016 के समय में भी कोर्ट ने राज्य की कांग्रेस सरकार को अतिक्रमण से संबंधित फटकार लगाई गई थी लेकिन उस समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम बहुल बस्ती में अपने वोट बैंक के लिए चुप्पी साध आंखों में पट्टी बांध ली। फिर दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को दिशा-निर्देश दिए थे कि अगर रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है तो पटरी के आसपास रहने वालों को 2 हफ्ते और उसके बाहर रहने वालों को 6 हफ़्तों के अंदर नोटिस देकर हटाया जा सकता है ताकि रेलवे का विस्तार हो सके। इसी फैसले की तर्ज पर हल्द्वानी के अतिक्रमण को हटाने की कार्यवाही की जा रही है जिससे प्रदेश में रेलवे के विस्तार से आधारभूत ढांचे को मजबूती मिल सके। इस बीच अतिक्रमण हटाओ अभियान के दायरे में आने वाले लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सोशल मीडिया पर इस बारे में जमकर हंगामा मचा है। पिछले कुछ दिनों से HASHTAG हल्द्वानी TREND कर रहा है।
सोशल मीडिया पर तो ये दावा भी किया जा रहा है कि उत्तराखंड सरकार और रेल मंत्रालय एक वर्ग विशेष के लोगों को टारगेट कर रही है। लोग इस अतिक्रमण हटाओ अभियान का विरोध कर रहे हैं। TWITTER पर चल रहे TREND में कथित अतिक्रमणकारियों को मजबूर और बेबस ठहराया जा रहा है। साथ ही अतिक्रमणकारियों के पक्ष में एजेंडा चलाया जा रहा है, ताकि सरकार अतिक्रमण हटाने का इरादा ही छोड़ दे। वहीं कांग्रेस नेता भी इस आग को खूब हवा दे रहे हैं और प्रदर्शनकारी अब ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली के शाहीन बाग आंदोलन की STYLE में महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया है जो अपनी पढ़ाई और सुरक्षित भविष्य का हवाला देकर अवैध कब्जे को न हटाने की मांग कर रहे हैं। महिलाएं ठंड के मौसम का सहारा लेकर इस अतिक्रमणरोधी को गलत बता रही हैं। खास सोच वाला एक्टिविस्टों का एक धड़ा भी इस कार्रवाई को समुदाय विशेष का उत्पीड़न बताकर लोगों को भड़काने में लगा हुआ है। इस मामले को लेकर हजारों लोगों ने कैंडल मार्च भी निकाला। अतिक्रमणकारियों का कहना है कि उनका विस्थापन किया जाए। उनके रहने की व्यवस्था हो। इससे पहले उन्हें बेघर नहीं किया जाए। उनका कहना है कि हमारे पूर्वज कई दशकों से उस जमीन पर रह रहे हैं। रेलवे अब इसको अपनी जमीन बता रहा है।
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। मामले में AIMIM CHIEF असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री भी हो गयी। ओवैसी ने TWEET करके इस अभियान को अल्पसंख्यकों पर कार्रवाई से जोड़ दिया। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने भी अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। सपा के उत्तराखंड प्रदेश महासचिव शोएब अहमद सिद्दीकी ने कहा कि अतिक्रमण के नाम पर देश में केवल एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है।
गौरतलब है कि इस मामले में अतिक्रमणकारियों की ओर से 2 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिस पर 5 जनवरी को सुनवाई होगी। अब इंतजार 5 जनवरी का है। इन अवैध कब्जों पर कार्रवाई होगी या नहीं, इस पर सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिक गई हैं।