आज़ादी की मशाल को चिंगारी देने वाला वीर मंगल पाण्डेय
वो दिन मार्च के महीनों के अंतिम दिन थे, आम दिनों की तरह सुनहरी धुप तप्त होती जा रही थी लेकिन उस दिन जो घटना घटित हुई वो आम नहीं थी | उस दिन जो सूरज उगा था उसकी चिंगारी सैकड़ों साल तक लोगों के दिलों में थी, है, और रहेगी..
स्वस्थ शरीर के लिए मशहूर
उस वक़्त हिन्दुस्तान में अत्याचार चरम पर था | चारो तरफ अंग्रेजी हुकूमत का कहर बरपा हुआ था| ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी की सेना में भर्ती जवानों के पास हथियार के नाम पर “एनफील्ड पी-53” नाम की राइफल हुआ करती थी और उस वक़्त सेना में 30 साल का एक जवान था जिसका जन्म एक ब्राम्हण परिवार में 19 जुलाई 1827 बलिया के नगवा गाँव में हुआ था| वह अपनी बहादुरी एवं स्वस्थ शरीर के लिए सेना में मशहूर था |
अंग्रेजी षड्यंत्र के खिलाफ
आजादी को चिंगारी देने वाले भारत माँ के इस वीर बेटे का नाम था मंगल पाण्डेय|
मंगल पाण्डेय ईस्ट इण्डिया कम्पनी में 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के जवान थे उनका लालन पालन ब्राम्हण घर में परंपरागत तरीके से हुआ था कम्पनी ने सेना में प्रयोग की जाने वाली रायफल “एनफील्ड पी 53” में कारतूस बदलने का काम किया | इस बन्दूक में गोली भरने के लिए सिपाहियों को गोली पहले दांत से कटनी पड़ती थी| उसके बाद बारूद को बन्दूक में डाला जाता था| गोली को नमी से बचाने के लिए उसके बाहरी परत पर सूअर और गाय की चर्बी लगाई जाती थी जो सैनिक विद्रोह क्रांति की मुख्य वजह बनी |
भारतीय सिपाहियों का मानना था कि अंग्रेजी हुकूमत जान बुझकर हमारा धर्म भ्रष्ट करने के लिए इस तरह की गोलियों का प्रयोग कर रही है | 2 फ़रवरी 1857 की शाम को बैरकपुर में परेड के दौरान नेटिव इंफैंट्री के सिपाहियों ने इस गोली के इस्तेमाल के लिए असहमति जता दी और अंग्रेजो के सबक सिखाने का षड्यंत्र बनाने लगे लेकिन अंग्रेजी अफसरों के कुछ मुखबिर भारतीय सेना में थे जिन्होंने इस बात की जानकारी अंग्रेजों को दे दी कि आज रात भारतीय सेना के जवान अंग्रेजी अफसरों पर हमला करने वाले हैं | अंग्रेजी हुकूमत इतना डर गयी थी कि उसने अपने तोपखाने बुलवा लिए |
अंग्रेजी बटालियन से अकेले लिया लोहा
29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय जब इस बात को लेकर अपने साथियों से आवाज़ उठाने के लिए बोल रहे थे तभी वहां लेफ्टिनेंट बी एच बो पहुँच गये जिनको देखकर मंगल पाण्डेय ने उन पर निशाना लगा कर फायर कर दिया गोली उनके घोड़े के पैर में लगी| गिरी हुई अंग्रेजी हुकूमत का लेफ्टिनेंट घोड़े समेत ज़मीन पर गिर गया | लेफ्टिनेंट बो के पीछे आते हुए मेजर सार्जेंट ह्युसन ने उन्हें उठाया| दोनों अपनी तलवार लेकर मंगल पाण्डेय की तरफ बढ़ने लगे| उस वक़्त इन तीनों के अलावा भी कई और भारतीय सैनिक उसी मैदान में मौजूद थे लेकिन उनमे से कोई भी अंग्रेजी अफसरों की मदद करने नहीं आया|
धोखेबाज शेख पलटू
मंगल पाण्डेय उन दोनों अफसरों पर भारी पड़ रहे थे लेकिन तभी शेख पलटू जो अंग्रेजो का पालतू था| उसने पीछे से आकार मंगल पाण्डेय को पकड़ लिया| जिसके बाद दोनों अंग्रेजी अफसर अपनी जान बचा कर भाग गए |
और तभी 34 नेटिव इंफ़ेंट्री के कमांडिंग अफ़सर कर्नल एस जी वेलर भी वहां पहुंच गये और उन्होंने मंगल पाण्डेय को कैद करने का हुक्म दिया| लेकिन कोई भी आगे नहीं बढ़ा तब डिविजन के कमांडिंग अफसर मेजर जनरल हियरसे ने कहा कि जिस भी सैनिक ने मेरे आदेश पर कदम नहीं बढ़ाये मैं उसे गोली मार दूंगा | इसके बाद जब सैनिक मंगल पांडे के तरफ बढे तो मंगल पाण्डेय ने अपनी बन्दुक को ज़मीन पर रख अपने सीने पर साध कर पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबा दिया लेकिन वो गोली मंगल पाण्डेय के कंधे और गर्दन को छीलते हुए निकल गयी, मंगल पाण्डेय ज़मीन पर गिर पड़े |
अंग्रेजी अफसर ने उन्हें गिरफ्तार कर अस्पताल भेज दिया | मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और गद्दार शेख पलटू को प्रमोशन दे दिया गया |
धधक उठी आजादी की मशाल
जब मंगल पाण्डेय जज के सामने पेश हुए तो उनके चेहरे पर चिंता और आत्मग्लानी के कोई भाव नहीं थे | मंगल पाण्डेय ने बयान दिया की इस घटना में मेरा कोई भी साथी नहीं था| अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के जुर्म में सिपाही नम्बर 1446 मंगल पाण्डेय को 18 अप्रैल को फांसी की सजा देना सुनिश्चित किया गया |
लेकिन मंगल पाण्डेय की लोकप्रियता बढती देख कर अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 8 अप्रैल 1857 की सुबह फांसी के फंदे पर लटका दिया | मंगल पाण्डेय ने देश की आजादी में अपने प्राण तो दे दिए लेकिन उनके विचार भारत के बच्चे-बच्चे में पनपने लगे | मंगल पाण्डेय ने आजादी की जो चिंगारी लगायी वो धधक उठी और देखते ही देखते पुरे हिन्दुस्तान की सिर्फ एक मांग थी “आज़ाद भारत”