लखनऊ हाईकोर्ट के फरमान के बाद यूपी सरकार आरक्षण के चक्कर में फंस गई है। सोमवार को कोर्ट ने बिना आरक्षण के निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया। इसके बाद विपक्ष ने सरकार को घेर लिया। ऐसे में सरकार मझधार में फंस गई है। एक्सपर्ट की मानें, तो बिना आरक्षण चुनाव कराना सरकार के लिए संभव नहीं है, क्योंकि इससे वोट बैंक खोने का खतरा है। जिसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार के पास अब सिर्फ 2 ही विकल्प बचे हैं। पहला- वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए। वहां से स्टे लेकर चुनाव करा दे। दूसरा- हाईकोर्ट के आदेश को मानते हुए कमेटी बनाए। कमेटी बनती है तो चुनाव होने में 2-3 महीने का समय लग सकता है। जबकि हाईकोर्ट ने सरकार से जल्द से जल्द चुनाव कराने का आदेश दिया है।
सबसे पहले 5 पॉइंट्स में हाईकोर्ट का आदेश पढ़ें…
1. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अधिसूचना निरस्त की जाती है। इस अधिसूचना के रद्द हो जाने से हाल ही में जो सीटों को लेकर बदलाव सामने आया था, वो वापस हो गया है।
2. सरकार की तरफ से 12 दिसंबर 2022 को शासनादेश जारी किया गया था कि जिन निकायों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, वहां कार्यपालक अधिकारी और वरिष्ठतम अधिकारी के माध्यम से नगर पालिकाओं के खाते चलेंगे, उसे निरस्त कर दिया गया है।
3. बिना ट्रिपल टेस्ट/शर्तों के ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता। चूंकि तय फॉर्मूले यानी ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को पूरा करने में कई महीने लग सकते हैं, ऐसे में चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के ही तुरंत कराए जाएं। अब जो यूपी में नगर निकाय चुनाव होंगे, उसमें एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर कोई भी चुनाव लड़ सकता है। ये सीटें सामान्य/खुली श्रेणी के लिए अधिसूचित की जाएंगी।
4. अगर नगर पालिका निकाय का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो चुनाव होने और निकाय के गठन तक तमाम मामलों को एक कमेटी देखेगी, जो तीन सदस्यीय होगी और इसकी अध्यक्षता जिला मजिस्ट्रेट करेंगे। सदस्यों में कार्यकारी अधिकारी/मुख्य कार्यकारी अधिकारी/नगर आयुक्त शामिल होंगे। वहीं इस कमेटी में तीसरा सदस्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित होगा, जो जिले स्तर का अफसर होगा। साथ ही ये भी सनद रहे कि ये कमेटी कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती, सिर्फ रोजाना के कार्यों का ही निर्वहन करेगी।
5. हम समझते हैं कि आयोग के लिए ये एक भारी और समय लेने वाला काम है लेकिन भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण निर्वाचित नगर निकायों के गठन में देरी नहीं की जा सकती है। समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव जल्द से जल्द हों, हम इंतजार नहीं कर सकते।
सरकार से कहां चूक हुई ?
पहली चूक: उत्तराखंड सरकार के पत्र पर नहीं दिया ध्यान
उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना है। ऐसे में सरकारी विभागों के ज्यादातर नियम यूपी सरकार वाले ही हैं। 15 नवंबर को उत्तराखंड सरकार ने यूपी के मुख्य सचिव को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने ट्रिपल टेस्ट कमेटी बनाए जाने की जानकारी दी थी। साथ ही कहा था कि कमेटी के काम को देखने के लिए यूपी सरकार की मदद की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अगर उसी वक्त कमेटी बना दी होती तो आज विपक्ष को बोलने का मौका नहीं मिलता।
दूसरी चूक: ओबीसी आयोग के न होने से हुआ नुकसान
उत्तर प्रदेश में अभी ओबीसी आयोग नहीं है। ऐसे में पिछड़ा वर्ग के मुद्दों पर कोई सीधे हस्तक्षेप नहीं हो पाता है। नगर विकास विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि अगर सरकार ने आयोग गठित किया होता तो आरक्षण में उसका हस्तक्षेप होता या मामले की सही जानकारी सरकार तक पहुंचती। ऐसे में सरकार संकट में नहीं फंसती।