RSS के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने 11 जनवरी 2023 को ‘ऑर्गेनाइजर’ पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में ये बात कही। इससे पहले 2 जून 2022 को भागवत ने कहा था कि हमें रोज मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना है? 6 सितंबर 2021 को कहा कि हिंदू और मुस्लिम एक ही वंश के हैं। 4 जुलाई 2021 को कहा- अगर कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता, तो वह हिंदू नहीं है। मोहन भागवत के इन बयानों से मुस्लिमों को लेकर RSS के रुख में नरमी की बात पर चर्चा हो रही है।
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भागवत बोले- इस्लाम को देश में खतरा नहीं
राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा के मुताबिक RSS का मुस्लिमों को लेकर हमेशा एक जैसा रुख रहा है। भागवत ने अपने बयान में हेडगेवार और संघ की मूल भावना की प्रगतिशील व्याख्या की है। राकेश सिन्हा मोहन भागवत के बयानों के दो मायने बताते हैं। पहला- संघ मुस्लिम समाज का विरोध नहीं करता। दूसरा- एक धर्म को मजबूत करने वाले कट्टर लोगों को कठोर जवाब मिला है।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई कहते हैं कि देश की आजादी के पहले से लेकर अभी तक मुस्लिमों को लेकर RSS का पॉलिटिकल रिस्पॉन्स रहा है। इसी वजह से तरह-तरह से इस धर्म पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। मोहन जी के इस बयान से लगता है कि अब इस्लाम धर्म को लेकर पॉलिटिकल रिस्पॉन्स में बदलाव हो रहा है। मुस्लिमों को अपना बताने की कोशिश हो रही है। ये पॉजिटिव और समाज में सौहार्द बढ़ाने वाला है।
संघ से जुड़ी पत्रिका ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी के मुताबिक मुस्लिम समुदाय में सुधारवादी लोगों की कमी है। जो थोड़े-बहुत उदार लोग हैं, उन्हें कट्टर लोग दबा देते हैं। ऐसे में संघ प्रमुख का मुस्लिम समुदाय के बड़े नेताओं से मुलाकात राष्ट्रीय हित और दोनों समुदायों के बीच अधिक समझ और सहयोग का माहौल तैयार करेगी।
पत्रकार और लेखक विवेक देशपांडे एक आर्टिकल में मुस्लिमों के प्रति मोहन भागवत के रुख के 3 मायने बताते हैं-
पहला – संघ का लक्ष्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा संकट 14% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। RSS को पता है कि उसे साधे बिना संघ का मकसद पूरा नहीं होगा।
दूसरा – संघ प्रमुख देवरस ने कहा था कि हिंदू माता-पिता से पैदा होने वाले ही हिंदू हैं। अब मोहन भागवत कहते हैं कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। इस तरह भागवत ने संघ में मुस्लिमों को लेकर जो विवादित संदर्भ थे, उसे बदलने की कोशिश की है।
तीसरा – 2014 में BJP की केंद्र में सरकार बनने के बाद मुस्लिम मॉब लिंचिंग की घटना बढ़ी। इससे दुनियाभर में भारत की आलोचना हुई। परेशानी भांपकर भागवत ने उदारवादी मुद्रा अपना ली।