Dr. Shyama Prasad Mukherjee ने दिखाया एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का सपना- अरविंद मेनन

Dr. Shyama Prasad Mukherjee

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरविंद मेनन ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Dr. Shyama Prasad Mukherjee) एक प्रख्यात शिक्षाविद, चिंतक व भाजपा की मूल पार्टी जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक अहम नेता थे। महर्षि कश्यप की कर्मभूमि जम्मू कश्मीर के एकत्रीकरण व परमिट सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना में अहम भूमिका निभायी थी । वे अपनी मुखर आवाज को लेकर विख्यात थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। महानता के सभी गुण उन्हें विरासत में मिले थे। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने में विख्यात शिक्षाविद् थे।

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डॉ. मुखर्जी 24 वर्ष की आयु में कोलकाता यूनिवर्सिटी सीनेट सदस्य बने

डॉ. मुखर्जी ने 22 वर्ष की आयु में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे 24 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। उनका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहां पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने उनको सम्मानित सदस्य बनाया। वहां से लौटने के बाद डॉ. मुखर्जी ने वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।

नेहरू और गांधी की तुष्टिकरण की नीतियों का विरोध किया

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कर्मक्षेत्र के रूप में 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधीजी व कांग्रेस की उन नीतियों का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। एक बार उन्होंने कहा- ‘वह दिन दूर नहीं जब गांधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा। उन्होंने नेहरूजी और गांधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया।

भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में डॉ. मुखर्जी ने वित्त मंत्रालय संभाला

अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में उन्होंने एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में वित्त मंत्रालय का काम संभाला। डॉ. मुखर्जी ने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।

1950 में भारत सरकार से दिया त्याग पत्र

1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा आघात लगा। उनसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी उनको स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।

1953 में 40 दिन तक जेल में बंद रहे डॉ. मुखर्जी

अटलबिहारी वाजपेयी (तत्कालीन विदेश मंत्री), वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर डॉ. मुखर्जी ने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक डॉ. मुखर्जी जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।

डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को सुसज्जित किया

अभी केवल जीवन के आधे ही क्षण व्यतीत हो पाए थे कि हमारी भारतीय संस्कृति के नक्षत्र अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ. मुखर्जी की मृत्यु की घोषणा की गईं। बंगभूमि से पैदा डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को सुसज्जित कर दिया था। बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है, उनमें से एक महान क्रांतिकारी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे।

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श्यामा प्रसाद 370 के कट्टर आलोचक थे

श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य दर्जा देने वाले, संविधान के अनुच्छेद 370 और कश्मीर में प्रवेश करने के लिए परमिट की जरुरत का के कट्टर आलोचक थे। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मजबूत सरकार ने 5 अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करके उनके इस सपने को साकार करने का काम किया और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।

भारत की एकता को और अधिक मजबूत करने तथा आगे बढ़ाने की दिशा में उनके अद्वितीय प्रयासों के लिए प्रत्येक भारतीय सदैव उनका ऋणी रहेगा। उन्होंने भारत की प्रगति के लिए कड़ी मेहनत की और एक मजबूत तथा समृद्ध राष्ट्र का सपना देखा और मोदी सरकार उनके इन सपनों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

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(ये लेखक के निजी विचार हैं)